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कुछ तो कहिये / नईम

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|रचनाकार=नईम|संग्रह=}}{{KKCatGhazal}} <poem>
कुछ तो कहिये कि सुने हम भी माजरा क्या है।
 
जीना दुश्वार तो मरने का आसरा क्या है।
 
लाखों तूफान आँधियों में जो महफूज रही
 
बता आये खाके वतन तेरा फलसफा क्या है।
 
न कोई लब्ज न जुमला जुबाने दिल है वो
 
कोई हस्सास ही पूछे ‘वाहवा’ क्या है।
 
जिन्हें नजीर से निस्वत न है ‘राघव’ से लगाव
 
हमीं बतायें क्या उनको कि ‘आगरा’ क्या है।
 
चला जो गाँवों-जवारों से हुआ ‘वेगम’ का
 
हमीं बतायें क्या उनको कि दादरा क्या है ।
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