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सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के | सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के | ||
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कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में, | कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में, | ||
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05:18, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के
कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में,
बजाते ही पाया, बज कर यही तार सब को
बहा ले जाएँगे, भनक पड़ जाए तनिक तो ।