भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐ मेरे दिल कहीं और चल / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:गीत]]
 
[[Category:गीत]]
 
+
<poem>
 
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
 
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
 
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
 
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
चुप रहा बेरहम आस्माँ
 
चुप रहा बेरहम आस्माँ
 
ऐ मेरे दिल कहीं और चल...
 
ऐ मेरे दिल कहीं और चल...
 +
</poem>

08:57, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण

ऐ मेरे दिल कहीं और चल
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
ढूंढ ले अब कोई दिल नया

चल जहाँ ग़म के मारे न हों
झूठी आशा के तारे न हों
इन बहारों से क्या फ़ायदा
जिसमें दिल की कली जल गई
ज़ख़्म फिर से हरा हो गया
ऐ मेरे दिल कहीं और चल....

चार आँसू कोई रो दिया
फेर कर मुँह कोई चल दिया
लुट रहा था किसी का जहाँ
देखती रह गई ये ज़मीं
चुप रहा बेरहम आस्माँ
ऐ मेरे दिल कहीं और चल...