भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गंगा जमुना / इन्साफ की डगर पर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना | दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना | ||
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना | सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना | ||
− | रख दोगे एक दिन तुम, संसार को | + | रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के |
अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय | अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय |
22:32, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण
रचनाकार: |
इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश हैं तुम्हारा, नेता तुम ही हो कल के
दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगिज ना डगमगाए
रस्ते बडे कठिन हैं, चलना संभल संभल के
इन्सानियत के सर पे, इज्जत का ताज रखना
तन मन की भेंट देकर, भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के