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"कब तक मलूँ जबीं से / मजरूह सुल्तानपुरी" के अवतरणों में अंतर
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<poem>कब तक मलूँ जबीं से उस संग-ए-दर को मैं | <poem>कब तक मलूँ जबीं से उस संग-ए-दर को मैं | ||
− | + | ऐ बेकसी संभाल, उठाता हूँ सर को मैं | |
− | किस किस को हाय, | + | किस किस को हाय, तेरे तग़ाफ़ुल का दूँ जवाब |
− | अक्सर तो रह गया हूँ झुका कर नज़र को मैं | + | अक्सर तो रह गया हूँ, झुका कर नज़र को मैं |
− | अल्लाह रे वो आलम-ए-रुख्सत | + | अल्लाह रे वो आलम-ए-रुख्सत कि देर तक |
तकता रहा हूँ यूँ ही तेरी रेहगुज़र को मैं | तकता रहा हूँ यूँ ही तेरी रेहगुज़र को मैं | ||
ये शौक़-ए-कामयाब, ये तुम, ये फ़िज़ा, ये रात | ये शौक़-ए-कामयाब, ये तुम, ये फ़िज़ा, ये रात | ||
कह दो तो आज रोक दूँ बढ़कर सहर को मैं | कह दो तो आज रोक दूँ बढ़कर सहर को मैं |
07:43, 23 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
कब तक मलूँ जबीं से उस संग-ए-दर को मैं
ऐ बेकसी संभाल, उठाता हूँ सर को मैं
किस किस को हाय, तेरे तग़ाफ़ुल का दूँ जवाब
अक्सर तो रह गया हूँ, झुका कर नज़र को मैं
अल्लाह रे वो आलम-ए-रुख्सत कि देर तक
तकता रहा हूँ यूँ ही तेरी रेहगुज़र को मैं
ये शौक़-ए-कामयाब, ये तुम, ये फ़िज़ा, ये रात
कह दो तो आज रोक दूँ बढ़कर सहर को मैं