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02:22, 24 फ़रवरी 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राम प्रसाद बिस्मिल}}[[Category:देशभक्ति]]<poem>न चाहूं चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूं चाहूँ स्वर्ग को जाना ।<br>मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
मुझे वर दे यही माता रहूं करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुखअगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत पे दीवाना ।<br>में ही हो आना
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।<br>लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दीचलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों कीस्वदेशी ही हो आना ।<br> रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगा रहे प्रेम हिन्दी मेंलगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, पढूं हिन्दी लिखुं हिन्दी ।<br>विद्या, धनकरुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br> भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।<br> स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।<br> लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।<br> करुं में प्रान तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।<br> नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br> उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br/poem>