भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=गुलज़ार | |रचनाकार=गुलज़ार | ||
|संग्रह = | |संग्रह = | ||
− | }} हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते | + | }} |
− | वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते | + | <poem>हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते |
+ | वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते | ||
− | जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन | + | जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन |
− | ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते | + | ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते |
− | शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा | + | शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा |
− | जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते | + | जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते |
− | + | लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो | |
− | + | ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते | |
− | + | </poem> | |
− | लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो | + | |
− | ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते< | + |
08:58, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते