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"दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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− | आईना देख के तसल्ली हुई | + | आईना देख के तसल्ली हुई |
− | हम को इस घर में जानता है कोई | + | हम को इस घर में जानता है कोई |
− | पक गया है शज़र पे फल शायद | + | पक गया है शज़र पे फल शायद |
− | फिर से पत्थर | + | फिर से पत्थर उछालता है कोई |
− | फिर नज़र में लहू के छींटे हैं | + | फिर नज़र में लहू के छींटे हैं |
− | तुम को शायद मुग़ालता है कोई | + | तुम को शायद मुग़ालता है कोई |
− | देर से गूँजतें हैं सन्नाटे | + | देर से गूँजतें हैं सन्नाटे |
− | जैसे हम को पुकारता है कोई < | + | जैसे हम को पुकारता है कोई |
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09:31, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई