Changes

खुमानी, अखरोट! / गुलज़ार

470 bytes added, 05:54, 24 फ़रवरी 2010
ख़ुमानी मोटी थी और अख़रोट का क़द कुछ ऊँचा था
भँवर कोई पीछे पड़ जाए, तो पत्थर की आड़ से होकर,
अख़रोट का हाथ पकड़ क्के के वापस भाग आती थी।
अख़रोट बहुत समझाता था,
पाँव तले की मिट्टी खेंच लिया करता है।"
इक शाम बहुत पानी आया तुगयानी तुग़यानी का,और एक भँवर...ख़ुमानी को पाँव से उठाकर, तुग़यानी में कूद गया।
अख़रोट अब भी उस जानिब देखा करता है,
जिस जानिब दरिया बहता है।
अख़रोट का क़द कुछ सहम गया है
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,423
edits