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"ख़लिश-ए-हिज्र-ए-दायमी न गई / मुनीर नियाज़ी" के अवतरणों में अंतर
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− | सर से सौदा गया मुहब्बत का | + | सर से सौदा गया मुहब्बत का |
− | दिल से पर इस की बेकली न गई | + | दिल से पर इस की बेकली न गई |
− | और सब की हिकायतें कह दीं | + | और सब की हिकायतें कह दीं |
− | बात अपनी कभी कही न गई | + | बात अपनी कभी कही न गई |
− | हम भी घर से 'मुनिर' तब निकले | + | हम भी घर से 'मुनिर' तब निकले |
− | बात अपनों की जब सही न गई | + | बात अपनों की जब सही न गई |
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09:59, 25 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
ख़लिश-ए-हिज्र-ए-दायमी न गई
तेरे रुख़ से ये बेरुख़ी न गई
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
हुस्न वालों की सादगी न गई
सर से सौदा गया मुहब्बत का
दिल से पर इस की बेकली न गई
और सब की हिकायतें कह दीं
बात अपनी कभी कही न गई
हम भी घर से 'मुनिर' तब निकले
बात अपनों की जब सही न गई