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|रचनाकार=मुनीर नियाज़ी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>वो दिन भी आने वाला है
जब तेरी इन काली आँखों में
हर जज़्बा मिट जायेगा
तेरे बाल जिंहें जिनहें देखें तो
सावान की घनघोर घटायें
आँखों में लहराती हैं
 
होंठ रसीले
ध्यान में लाखों फूलों की
वो दिन दूर नहीं जब इन पर
पतझर की रुत छा जायेगी
 
और उस पतझर के मौसम की
किसी अकेली शाम की चुप में
जैसे कोई किसी जंगल में
गीत सुहाने गाता है
-तुझ को पास बुलाता है
</poem>
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