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09:32, 26 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नी मैं कत्तां परीतां नाल, चरखा चन्नण दा
शाव्वा चरखा चन्नण दा
नी ए विकदा ए वडे बज़ार, चरखा चन्नण दा
शाव्वा चरखा चन्नण दा
नी ए घड़ी ए किसे सुनार, लज्ज लोहे दी
शाव्वा चरखा चन्नण दा

चरखा कूकर देंदा - शाव्वा
कूकर लगी कलेजे - शाव्वा
इक मेरा दिल पया धडके - शाव्वा
दूजे कंगण छणके - शाव्वा

माँ मेरी मैंनू चरखा दित्ता, विच चरखे दे मेखां
माँ राणी मैनू याद पई आवे, जद चरखे वल वेखां
चरखा चन्नण दा...

चरखे दा मैं रंग की आखां, रंग आखां सुनहरी
बाबल मेरे हथ जो फड़या, ते रोया भरी कचहरी
चरखा चन्नण दा...

उचचे बनेरे कां पया बोले, मैं चरखे तंद पावां
वे कांवां मेरा वीर जे आवे, तैनु कुट कुट चूरीआं पावां
चरखा चन्नण दा...