भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला / ग़ालिब का नाम बदलकर शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालि)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला
 +
क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उरियां<ref>नग्न</ref> निकला
  
शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर--सामाँ निकला <br>
+
ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की यारब
क़ैस तसवीर के पर्दे में भी उरियाँ निकला <br><br>
+
तीर भी सीना--बिस्मिल<ref>घायल की छाती</ref> से पर-अफ़शां<ref>पंख फड़फड़ाता हुआ</ref> निकला
  
ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की यारब <br>
+
बू-ए-गुल, नाला-ए-दिल<ref>दिल की आह</ref> दूद<ref>धुआं</ref>-ए-चिराग़-ए-महफ़िल
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से परअफ़्शाँ निकला <br><br>
+
जो तेरी बज़्म से निकला सो परिशां निकला
  
बू--गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल <br>
+
थी नौ-आमोज़<ref>नौसिखिया</ref>-फ़ना हिम्मते दुश्वार-पसंद
जो तेरी बज़्म से निकला सो परिशाँ निकला <br><br>
+
सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसां निकला  
  
दिल-ए-हसरतज़दा था माईदा-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द <br>
+
दिल में फिर गिरियां<ref>रुदन</ref> ने इक शोर उठाया "ग़ालिब"  
काम यारों का बक़द्र-ए-लब-ओ-दंदाँ निकला <br><br>
+
आह! जो क़तरा न निकला था, सो तूफ़ां निकला </poem>
 
+
{{KKMeaning}}
थी नौआमोज़-ए-फ़ना हिम्मत-ए-दुश्वारपसंद <br>
+
सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला <br><br>
+
 
+
दिल में फिर गिरिया ने इक शोर उठाया "ग़ालिब" <br>
+
आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला <br><br>
+

05:41, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला
क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उरियां<ref>नग्न</ref> निकला

ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की यारब
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल<ref>घायल की छाती</ref> से पर-अफ़शां<ref>पंख फड़फड़ाता हुआ</ref> निकला

बू-ए-गुल, नाला-ए-दिल<ref>दिल की आह</ref> दूद<ref>धुआं</ref>-ए-चिराग़-ए-महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परिशां निकला

थी नौ-आमोज़<ref>नौसिखिया</ref>-फ़ना हिम्मते दुश्वार-पसंद
सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसां निकला

दिल में फिर गिरियां<ref>रुदन</ref> ने इक शोर उठाया "ग़ालिब"
आह! जो क़तरा न निकला था, सो तूफ़ां निकला

शब्दार्थ
<references/>