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"शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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05:41, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण
शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला
क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उरियां<ref>नग्न</ref> निकला
ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की यारब
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल<ref>घायल की छाती</ref> से पर-अफ़शां<ref>पंख फड़फड़ाता हुआ</ref> निकला
बू-ए-गुल, नाला-ए-दिल<ref>दिल की आह</ref> दूद<ref>धुआं</ref>-ए-चिराग़-ए-महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परिशां निकला
थी नौ-आमोज़<ref>नौसिखिया</ref>-फ़ना हिम्मते दुश्वार-पसंद
सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसां निकला
दिल में फिर गिरियां<ref>रुदन</ref> ने इक शोर उठाया "ग़ालिब"
आह! जो क़तरा न निकला था, सो तूफ़ां निकला
शब्दार्थ
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