"बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना | + | <poem>बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना |
− | आदमी को भी मयस्सर नहीं | + | आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना |
− | + | गिरियां<ref>रोना</ref> चाहे है ख़राबी मेरे काशाने<ref>घर</ref> की | |
− | दर-ओ-दीवार से टपके है | + | दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना |
− | + | वाए दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको | |
− | आप जाना उधर और आप ही | + | आप जाना उधर और आप ही हैरां होना |
− | जल्वा | + | जल्वा अज़-बस कि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है |
− | जौहर-ए- | + | जौहर-ए-आईना<ref>आईने का पानी</ref> भी चाहे है मिज़गां<ref>पलकें</ref> होना |
− | + | इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना<ref>चाहने वालों का वध-स्थल का ऐशवर्य</ref> मत पूछ | |
− | ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का | + | ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां<ref>म्यान से बाहर निकलना, नग्न</ref> होना |
− | ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात | + | ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात |
− | तू हो और आप | + | तू हो और आप बसद-रंग<ref>सैंकड़ों रंगों में</ref> गुलिस्तां होना |
− | + | इशरत-ए-पारा-ए-दिल<ref>दिल के टुकड़ों का मज़ा</ref> ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना | |
− | लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिगर ग़र्क़-ए- | + | लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिग़र<ref>जिगर के घाव का मज़ा</ref> ग़र्क़-ए-नमकदां<ref>नमकदान मे डूबना</ref> होना |
− | की मेरे क़त्ल के बाद | + | की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा |
− | हाय उस | + | हाय उस ज़ूद-पशेमां<ref>शीघ्र लज्जित होने वाला</ref> का पशेमां होना |
− | हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब' | + | हैफ़<ref>अफसोस</ref> उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब' |
− | + | जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना </poem> | |
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07:20, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना
गिरियां<ref>रोना</ref> चाहे है ख़राबी मेरे काशाने<ref>घर</ref> की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना
वाए दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
जल्वा अज़-बस कि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है
जौहर-ए-आईना<ref>आईने का पानी</ref> भी चाहे है मिज़गां<ref>पलकें</ref> होना
इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना<ref>चाहने वालों का वध-स्थल का ऐशवर्य</ref> मत पूछ
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां<ref>म्यान से बाहर निकलना, नग्न</ref> होना
ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात
तू हो और आप बसद-रंग<ref>सैंकड़ों रंगों में</ref> गुलिस्तां होना
इशरत-ए-पारा-ए-दिल<ref>दिल के टुकड़ों का मज़ा</ref> ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना
लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिग़र<ref>जिगर के घाव का मज़ा</ref> ग़र्क़-ए-नमकदां<ref>नमकदान मे डूबना</ref> होना
की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा
हाय उस ज़ूद-पशेमां<ref>शीघ्र लज्जित होने वाला</ref> का पशेमां होना
हैफ़<ref>अफसोस</ref> उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना