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"फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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दिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद आया<br><br>
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फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया  
  
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सादगी - हाए - तमन्ना, यानी
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया <br><br>
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ज़िन्दगी यों भी गुज़र ही जाती
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क्यों तेरा राहगुज़र याद आया  
  
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क्यों तेरा राहगुज़र याद आया <br><br>
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आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
घर तेरा ख़ुल्द में गर याद आया <br><br>
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दिल से तंग आ के जिगर याद आया  
  
आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ <br>
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फिर तेरे कूचे को जाता है ख़याल
दिल से तंग आ के जिगर याद आया <br><br>
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फिर तेरे कूचे को जाता है ख़याल <br>
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कोई वीरानी-सी वीरानी है  
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कोई वीरानी-सी-वीराँई है <br>
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मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद' <br>
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10:23, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

फिर मुझे दीदा-ए-तर<ref>भीगी हुई आँख</ref> याद आया
दिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद<ref></ref> आया

दम लिया था न क़यामत ने हनोज़<ref>अभी</ref>
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

सादगी - हाए - तमन्ना, यानी
फिर वो नैरंगे-नज़र<ref>दृष्टि का सौन्दर्य</ref> याद आया

उज़्रे-वामान्दगी<ref>थकन का बहाना</ref> ऐ हसरते-दिल
नाला करता था जिगर याद आया

ज़िन्दगी यों भी गुज़र ही जाती
क्यों तेरा राहगुज़र याद आया

क्या ही रिज़्वां<ref>स्वर्ग का दरबान</ref> से लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्द<ref>स्वर्ग</ref> में गर याद आया

आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आ के जिगर याद आया

फिर तेरे कूचे को जाता है ख़याल
दिल-ए-गुमगश्ता<ref></ref> मगर याद आया

कोई वीरानी-सी वीरानी है
दश्त<ref>जंगल</ref> को देख के घर याद आया

मैंने मजनूं पे लड़कपन में 'असद'
संग<ref>पत्थर</ref> उठाया था कि सर याद आया

शब्दार्थ
<references/>