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रसखान
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खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
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खेलत फाग सुहाग भरी,  
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
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अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
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जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
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भारत कुंकुम, केसर की  
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पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
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गेरत लाल गुलाल लली,  
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मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
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जात चली रसखान अली,  
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मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
 
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19:20, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : खेलत फाग
  रचनाकार: रसखान

खेलत फाग सुहाग भरी, 
अनुरागहिं लालन क धरि कै ।

भारत कुंकुम, केसर की 
पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥

गेरत लाल गुलाल लली, 
मनमोहन मौज मिटा करि कै ।

जात चली रसखान अली, 
मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥