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"मिट्टी दा बावा (1) / पंजाबी" के अवतरणों में अंतर

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मेरा सोहणा माही, आजा वे
 
मेरा सोहणा माही, आजा वे
 
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|| width="400" bgcolor="blue"|<poem>मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं
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उत्ते चा दिन्नी आं खेसी
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वतनां वाले माण करन
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की मैं माण करां परदेसी
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मेरा सोहणा माही, आजा वे
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बूहे अग्गे लावां बेरीआं
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गल्लां घर-घर होंण तेरीआं ते मेरीआं
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वे तू शकल दिखा जा वे
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मेरा सोहणा माही, आजा वे
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बूहे अग्गे पाणी वगदा
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साडा कल्लआं दा जी नईओं लगदा
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सानूं गल नाल लाजा वे
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मेरा सोहणा माही, आजा वे
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09:31, 28 फ़रवरी 2010 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

--इस लोकगीत में एक पत्नी अपने परदेसी पति को याद कर रही है। अभी उसके कोई संतान भी नहीं है तो वो खुद को बहुत अकेला महसूस करती है।--

मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं
उत्ते चा दिन्नी आं खेसी
वतनां वाले माण करन
की मैं माण करां परदेसी
मेरा सोहणा माही, आजा वे

बूहे अग्गे लावां बेरीआं
गल्लां घर-घर होंण तेरीआं ते मेरीआं
वे तू शकल दिखा जा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे

बूहे अग्गे पाणी वगदा
साडा कल्लआं दा जी नईओं लगदा
सानूं गल नाल लाजा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे

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मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं
उत्ते चा दिन्नी आं खेसी
वतनां वाले माण करन
की मैं माण करां परदेसी
मेरा सोहणा माही, आजा वे

बूहे अग्गे लावां बेरीआं
गल्लां घर-घर होंण तेरीआं ते मेरीआं
वे तू शकल दिखा जा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे

बूहे अग्गे पाणी वगदा
साडा कल्लआं दा जी नईओं लगदा
सानूं गल नाल लाजा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे