भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झूमती चली हवा याद आ गया कोई / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र }} Category:गीत झूमती चली हवा, याद आ गया कोई बुझत...) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते | गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते | ||
− | ::::और | + | ::::और ऐसे में मुझे फिर बुला गया कोई ! |
10:35, 28 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
झूमती चली हवा, याद आ गया कोई
बुझती-बुझती याद को, फिर जला गया कोई !
खो गई हैं मंज़िलें, मिट गए हैं रास्ते
गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते
- और ऐसे में मुझे फिर बुला गया कोई !
चुप है चांद-चांदनी, चुप यह आसमान है
मीठी-मीठी नींद में सो रहा जहान है
- आज आधी रात को क्यों जगा गया कोई !