भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रीछ का बच्चा / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
  
 
था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।
 
था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।
 +
 
लोहे की कड़ी  जिस पे खड़कती थी सरापा ।
 
लोहे की कड़ी  जिस पे खड़कती थी सरापा ।
 +
 
कांधे पे चढ़ा  झूलना  और  हाथ में प्याला ।
 
कांधे पे चढ़ा  झूलना  और  हाथ में प्याला ।
 +
 
बाज़ार  में  ले आए दिखाने  को  तमाशा ।
 
बाज़ार  में  ले आए दिखाने  को  तमाशा ।
 +
 
       आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।
 
       आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।

18:18, 23 जनवरी 2007 का अवतरण

रीछ का बच्चा नज़ीर अकबराबादी

~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~

कल राह में जाते जो मिला रीछ का बच्चा।

ले आए वही हम भी उठा रीछ का बच्चा ।

सौ नेमतें खा-खा के पला रीछ का बच्चा ।

जिस वक़्त बड़ा रीछ हुआ रीछ का बच्चा ।


       जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।।


था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।

लोहे की कड़ी जिस पे खड़कती थी सरापा ।

कांधे पे चढ़ा झूलना और हाथ में प्याला ।

बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा ।

      आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।