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"रीछ का बच्चा / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा। | था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा। | ||
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लोहे की कड़ी जिस पे खड़कती थी सरापा । | लोहे की कड़ी जिस पे खड़कती थी सरापा । | ||
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कांधे पे चढ़ा झूलना और हाथ में प्याला । | कांधे पे चढ़ा झूलना और हाथ में प्याला । | ||
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बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा । | बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा । | ||
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आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।। | आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।। |
18:18, 23 जनवरी 2007 का अवतरण
रीछ का बच्चा नज़ीर अकबराबादी
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कल राह में जाते जो मिला रीछ का बच्चा।
ले आए वही हम भी उठा रीछ का बच्चा ।
सौ नेमतें खा-खा के पला रीछ का बच्चा ।
जिस वक़्त बड़ा रीछ हुआ रीछ का बच्चा ।
जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।।
था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।
लोहे की कड़ी जिस पे खड़कती थी सरापा ।
कांधे पे चढ़ा झूलना और हाथ में प्याला ।
बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा ।
आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।