भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो / इंदीवर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
आता लबों पे नाम तेरा बार-बार क्यूँ?
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=इंदीवर
 +
}}
 +
[[Category:गीत]]
 +
<poem>
 +
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो
 +
समदरसी है नाम तुम्हारो, नाम की लाज करो
 +
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..
  
है रोज़ सुबह शाम तेरा इंतज़ार क्यूँ।।
+
एक नदी एक नाला कहाय, मैल हो नीर भरो
 +
गंगा में मिल कर दोनों, गंगा नाम परो
 +
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..
  
::नाजुक तरी निगाह, बड़े नाज की पली।
+
काँटे और कलियाँ दोनों से, मधुबन रहे भरो
 
+
माली एक समान ही सीँचे, कर दे सबको हरो
::ऎसी भली निगाह से दिल का शिकार क्यूँ।।
+
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..
 
+
</poem>
मेरे क़रीब आ तू मेरे और भी क़रीब।
+
 
+
दो दिल न मिल सके तो हुईं आँखें चार क्यूँ।।
+

05:59, 1 मार्च 2010 का अवतरण

प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो
समदरसी है नाम तुम्हारो, नाम की लाज करो
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..

एक नदी एक नाला कहाय, मैल हो नीर भरो
गंगा में मिल कर दोनों, गंगा नाम परो
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..

काँटे और कलियाँ दोनों से, मधुबन रहे भरो
माली एक समान ही सीँचे, कर दे सबको हरो
प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..