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"दर्पण को देखा तूने / इंदीवर" के अवतरणों में अंतर

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'''गीतकार : कैफ़ी आजमी
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दर्पण को देखा तूने
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जब जब किया श्रृंगार
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जब जब आई बहार
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एक बदनसीब हूँ मैं
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मुझे नहीं देखा एक बार
  
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सूरज की पहली किरनों को
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देखा तूने अलसाते हुए
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रातों में तारों को देखा
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सपनों में खो जाते हुए
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यूँ किसी न किसी बहाने
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तूने देखा सब संसार
  
खेलो ना मेरे दिल से, ओ मेरे साजना, (ओ साजना -२)
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काजल की क़िस्मत क्या कहिये
 
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नैनों में तूने बसाया है
खेलो ना, खेलो ना, मेरे दिल से, खेलो ना ...
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आँचल की क़िस्मत क्या कहिये
 
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तूने अंग लगाया है
 
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हसरत ही रही मेरे दिल में
मुस्कुराके देखते तो हो मुझे, ग़म है किस लिये निगाह में,
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बनूँ तेरे गले का हार
 
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मंज़िल अपनी तुम अलग बसाओगे, मुझको छोड़ दोगे राह में ,
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प्यार क्या दिल्लगी, प्यार क्या खेल है खेलो ना ...
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क्यूँ नज़र मिलाई थी लगाव से, हँसके दिल मेरा लिया था क्यूँ ,
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क्यूँ मिले थे ज़िन्दगी के मोड़ पर, मुझको आसरा दिया था क्यूँ
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प्यार क्या दिल्लगी, प्यार क्या खेल है खेलो ना ...
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खेलो ना मेरे दिल से, ओ मेरे साजना...........
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08:36, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

दर्पण को देखा तूने
जब जब किया श्रृंगार
फूलों को देखा तूने
जब जब आई बहार
एक बदनसीब हूँ मैं
मुझे नहीं देखा एक बार

सूरज की पहली किरनों को
देखा तूने अलसाते हुए
रातों में तारों को देखा
सपनों में खो जाते हुए
यूँ किसी न किसी बहाने
तूने देखा सब संसार

काजल की क़िस्मत क्या कहिये
नैनों में तूने बसाया है
आँचल की क़िस्मत क्या कहिये
तूने अंग लगाया है
हसरत ही रही मेरे दिल में
बनूँ तेरे गले का हार