भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक,दो,तीन,आजा मौसम है रंगीन / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: ''' गीतकार : शमीम जयपुरी मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो जिसकी आवाज़ ...)
 
छो (मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो / दिल भी तेरा हम भी तेरे का नाम बदलकर एक,दो,तीन,आजा मौसम है रंगीन)
(कोई अंतर नहीं)

10:22, 1 मार्च 2010 का अवतरण

गीतकार : शमीम जयपुरी


मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो

जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो

आवाज़ न दो...


मैंने अब तुम से न मिलने की कसम खाई है

क्या खबर तुमको मेरी जान पे बन आई है

मैं बहक जाऊँ कसम खाके तुम ऐसा न करो

आवाज़ न दो...


दिल मेरा डूब गया आस मेरी टूट गई

मेरे हाथों ही से पतवार मेरी छूट गई

अब मैं तूफ़ान में हूँ साहिल से इशारा न करो

आवाज़ न दो...