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"एक,दो,तीन,आजा मौसम है रंगीन / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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छो (मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो / दिल भी तेरा हम भी तेरे का नाम बदलकर एक,दो,तीन,आजा मौसम है रंगीन)
 
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''' गीतकार : शमीम जयपुरी
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एक दो तीन, आजा मौसम है रंगीन
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आजा...
  
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रात को छुप-छुप के मिलना
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दुनिया समझे पाप रे
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सम्हलके खिड़की खोल बलमवा
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देखे तेरा बाप रे!
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आजा...
  
मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो
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ये मदमस्त जवानी है
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तेरे लिये ये दिवानी है
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डूब के इस गहराई में
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देख ले कितना पानी है
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आजा...
  
जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो
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क्यूँ तू मुझे ठुकराता है
 
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मुझसे नज़र क्यूँ चुराता है
आवाज़ न दो...
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लूट ये दुनिया तेरी है
 
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प्यार से क्यूँ घबराता है
 
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आजा...
मैंने अब तुम से न मिलने की कसम खाई है
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क्या खबर तुमको मेरी जान पे बन आई है
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मैं बहक जाऊँ कसम खाके तुम ऐसा न करो
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आवाज़ न दो...
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दिल मेरा डूब गया आस मेरी टूट गई
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मेरे हाथों ही से पतवार मेरी छूट गई
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अब मैं तूफ़ान में हूँ साहिल से इशारा न करो
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आवाज़ न दो...
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10:25, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

एक दो तीन, आजा मौसम है रंगीन
आजा...

रात को छुप-छुप के मिलना
दुनिया समझे पाप रे
सम्हलके खिड़की खोल बलमवा
देखे तेरा बाप रे!
आजा...

ये मदमस्त जवानी है
तेरे लिये ये दिवानी है
डूब के इस गहराई में
देख ले कितना पानी है
आजा...

क्यूँ तू मुझे ठुकराता है
मुझसे नज़र क्यूँ चुराता है
लूट ये दुनिया तेरी है
प्यार से क्यूँ घबराता है
आजा...