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"कारे बदरा तू न जा / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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ओ पंछी प्यारे सांझ सखा रे <br />
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बोले तू कौन सी बोली बता रे <br />
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|रचनाकार=शैलेन्द्र
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कारे बदरा तू न जा न जा बैरी तू बिदेस न जा
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घननन मेघ-मल्हार सुना रिमझिम रस बरसा जा
  
मैं तो पंछी पिंजरे की मैना<br />
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सनन-सनन हाय पवन झकोरा बुझती आग जलाए
पँख मेरे बेकार <br />
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मन की बात नयन में आए मुझसे कही न जाए
बीच हमारे सात रे सागर<br />
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कारे बदरा तू न जा ...
कैसे चलूँ उस पार<br />
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ओ पंछी प्यारे ...<br />
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फागुन महीना फूली बगिया <br />
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माथे का सिन्दूर रुलावे लट नागिन बन जाए
आम झरे अमराई<br />
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लाख रचाऊँ उन बिन कजरा अँसुअन से धुल जाए
मैं खिड़की से चुप चुप देखूँ <br />
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कारे बदरा तू न जा ...
ऋतु बसंत की आई<br />
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ओ पंछी प्यारे ...
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चौरस्ते पे जैसे मुसाफ़िर पथ पूछे घबराए
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कौन देस किस ओर जाऊँ मैं मन मेरा समझ न पाए
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कारे बदरा तू न जा ..
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10:30, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

कारे बदरा तू न जा न जा बैरी तू बिदेस न जा
घननन मेघ-मल्हार सुना रिमझिम रस बरसा जा

सनन-सनन हाय पवन झकोरा बुझती आग जलाए
मन की बात नयन में आए मुझसे कही न जाए
कारे बदरा तू न जा ...

माथे का सिन्दूर रुलावे लट नागिन बन जाए
लाख रचाऊँ उन बिन कजरा अँसुअन से धुल जाए
कारे बदरा तू न जा ...

चौरस्ते पे जैसे मुसाफ़िर पथ पूछे घबराए
कौन देस किस ओर जाऊँ मैं मन मेरा समझ न पाए
कारे बदरा तू न जा ..