भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो () |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=शैलेन्द्र | |
− | + | }} | |
− | + | [[Category:गीत]] | |
+ | <poem> | ||
+ | तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं | ||
+ | तेरे लाडलों की दुआ माँगते हैं | ||
− | + | यतीमों की दुनिया में हरदम अंधेरा | |
− | + | इधर भूल कर भी न आया सवेरा | |
− | + | इसी शाम को एक पल भर जले जो | |
+ | हम आशा का ऐसा दिया माँगते हैं ... | ||
− | + | थे हम जिनकी आँखों के चंचल सितारें | |
− | + | हमें छोड़ वो इस जहाँ से सिधारे | |
− | + | किसीकी न हो जैसी क़िसमत है अपनी | |
− | + | दुखी दिल सभी का भला माँगते हैं ... | |
− | + | बचा हो जो रोती क टुकड़ा दिला दो | |
− | + | जो उतरा हो तन से वो कपड़ दिला दो | |
− | + | </poem> | |
− | + |
10:37, 1 मार्च 2010 का अवतरण
तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं
तेरे लाडलों की दुआ माँगते हैं
यतीमों की दुनिया में हरदम अंधेरा
इधर भूल कर भी न आया सवेरा
इसी शाम को एक पल भर जले जो
हम आशा का ऐसा दिया माँगते हैं ...
थे हम जिनकी आँखों के चंचल सितारें
हमें छोड़ वो इस जहाँ से सिधारे
किसीकी न हो जैसी क़िसमत है अपनी
दुखी दिल सभी का भला माँगते हैं ...
बचा हो जो रोती क टुकड़ा दिला दो
जो उतरा हो तन से वो कपड़ दिला दो