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"तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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जोगी जबसे तू आया मेरे दवारे<br />
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मेरे रँग गए सांझ सखारे<br />
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तू तो अँखियों में जाने जी की बतियाँ<br />
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|रचनाकार=शैलेन्द्र
तौसे मिलना ही ज़ुल्म भया रे<br />
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ओ जोगी जबसे ...<br />
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तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं
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तेरे लाडलों की दुआ माँगते हैं
  
देखी साँवली सूरत ये नैना जुड़ाए<br />
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यतीमों की दुनिया में हरदम अंधेरा
तेरी छबी देखी जबसे रे नैना जुड़ाए<br />
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इधर भूल कर भी न आया सवेरा
भए बिन कजरा ये कजरारे<br />
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इसी शाम को एक पल भर जले जो
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हम आशा का ऐसा दिया माँगते हैं ...
  
जाके पनघट पे बैठूँ मैं, राधा दीवानी<br />
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थे हम जिनकी आँखों के चंचल सितारें
बिन जल लिए चली आयूँ, राधा दीवानी<br />
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हमें छोड़ वो इस जहाँ से सिधारे
मोहे अजब ये रोग लगा रे<br />
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किसीकी न हो जैसी क़िसमत है अपनी
ओ जोगी जबसे तू ...
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दुखी दिल सभी का भला माँगते हैं ...
  
मीठी मीठी अगन ये, सह न सकूँगी<br />
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बचा हो जो रोती क टुकड़ा दिला दो
मैं तो छुई-मुई अबला रे, सह न सकूँगी<br />
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जो उतरा हो तन से वो कपड़ दिला दो
मेरे और निकट मत आ रे<br />
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</poem>
ओ जोगी जबसे तू ...
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10:37, 1 मार्च 2010 का अवतरण

तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं
तेरे लाडलों की दुआ माँगते हैं

यतीमों की दुनिया में हरदम अंधेरा
इधर भूल कर भी न आया सवेरा
इसी शाम को एक पल भर जले जो
हम आशा का ऐसा दिया माँगते हैं ...

थे हम जिनकी आँखों के चंचल सितारें
हमें छोड़ वो इस जहाँ से सिधारे
किसीकी न हो जैसी क़िसमत है अपनी
दुखी दिल सभी का भला माँगते हैं ...

बचा हो जो रोती क टुकड़ा दिला दो
जो उतरा हो तन से वो कपड़ दिला दो