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"तेरा जाना दिल के अरमानों का लुट जाना / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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(कोई अंतर नहीं)
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10:39, 1 मार्च 2010 का अवतरण
मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे शाम रंग दइ दे
छुप जाऊँगी रात ही में, मोहे पी का संग दइ दे
एक लाज रोके पैयाँ , एक मोह खींचे बैयाँ
जाऊँ किधर न जानूँ, हम का कोई बताई दे
बदरी हटा के चंदा, चुपके से झाँके चंदा
तोहे राहू लागे बैरी, मुस्काये जी जलाइ के
कुछ खो दिया है पाइ के, कुछ पा लिया गवाइ के
कहाँ ले चला है मनवा, मोहे बाँवरी बनाइ के