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"मन भावन के घर जाए गोरी / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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'''गीतकार : शैलेन्द्र सिंह
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मन भावन के घर जाए गोरी
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घूँघट में शरमाए गोरी
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बंधी रहे ये प्यार की डोरी
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हमें ना भुलाना...
  
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बचपन के दिन खेल गंवाए
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आई जवानी तो बालम आए
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तेरे आंगन बंधे बधाई गोरी
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क्यों नैना छलकाए गोरी
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हमें ना भुलाना...
  
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
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इस दुनिया की रीत यही है
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हाथ जो थामे मीत वही है
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अब हम तो हुए पराए गोरी
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फिर तेरे संग जाए गोरी
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हमें ना भुलाना...
  
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
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मस्ती भरे सावन के झूले
 
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तुझको कसम है जो तू भूले
ढूंढ ले अब कोई घर नया
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अब के जब वापस आए गोरी
 
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गोद भरी ले आए गोरी
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
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हमें ना भुलाना...
 
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चल जहाँ गम के मारे न हों
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झूठी आशा के तारे न हों
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झूठी आशा के तारे न हों
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इन बहारों से क्या फ़ायदा
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जिस में दिल की कली जल गई
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ज़ख़्म फिर से हरा हो गया
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ऐ मेरे दिल कहीं और चल
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चार आँसू कोई रो दिया
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फेर के मुँह कोई चल दिया
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फेर के मुँह कोई चल दिया
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लुट रहा था किसी का जहाँ
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देखती रह गई ये ज़मीं
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चुप रहा बेरहम आसमां
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ऐ मेरे दिल कहीं और चल
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10:52, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

मन भावन के घर जाए गोरी
घूँघट में शरमाए गोरी
बंधी रहे ये प्यार की डोरी
हमें ना भुलाना...

बचपन के दिन खेल गंवाए
आई जवानी तो बालम आए
तेरे आंगन बंधे बधाई गोरी
क्यों नैना छलकाए गोरी
हमें ना भुलाना...

इस दुनिया की रीत यही है
हाथ जो थामे मीत वही है
अब हम तो हुए पराए गोरी
फिर तेरे संग जाए गोरी
हमें ना भुलाना...

मस्ती भरे सावन के झूले
तुझको कसम है जो तू भूले
अब के जब वापस आए गोरी
गोद भरी ले आए गोरी
हमें ना भुलाना...