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"हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
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हम दर्द के सुर में गाते हैं
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आँसू भी छलकते आते हैं
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कश लगा, कश लगा, कश लगा - 2
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पहलू में पराये दर्द बसाके
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हँसना हँसाना सीख ज़रा
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तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
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हम प्यार के दीप जलाते हैं
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हैं सबसे मधुर वो गीत ...
  
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काँटों में खिले हैं फूल हमारे
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रंग भरे अरमानों के
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नादान हैं जो इन काँटों से
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हैं सबसे मधुर वो गीत ...
  
 
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जब ग़म का अन्धेरा घिर आये
ज़िन्दगी ऐ कश लगा - 2
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समझो के सवेरा दूर नहीं
 
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हर रात की है सौगात यही
हसरतों की राख़ उड़ा
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तारे भी यही दोहराते हैं
 
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हैं सबसे मधुर वो गीत ...
 
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ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
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बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा बहता जा
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कश लगा, कश लगा, कश लगा....
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जलती है तनहाईयाँ तापी हैं रात रात जाग जाग के
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उड़ती हैं चिंगारियाँ, गुच्छे हैं लाल लाल गीली आग के
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खिलती है जैसे जलते जुगनू हों बेरियों में
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आँखें लगी हो जैसे उपलों की ढेरियों में
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दो दिन का आग है ये, सारे जहाँ का धुंआँ
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दो दिन की ज़िन्दगी में, दोनो जहाँ का धुआँ
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ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
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बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा, बहता जा
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कश लगा, कश लगा, कश लगा....
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छोड़ी हुई बस्तियाँ, जाता हूँ बार बार घूम घूमके
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मिलते नहीं वो निशान, छोड़े थे दहलीज़ चूम चूमके
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जो पायें चढ़ जायेंगे, जंगल की क्यारियाँ हैं
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पगडंडियों पे मिलना, दो दिन की यारियाँ हैं
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क्या जाने कौन जाये, आरी से बारी आये
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हम भी कतार में हैं, जब भी सवारी आये
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ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
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बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा बहता जा
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कश लगा, कश लगा, कश लगा....
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ज़िन्दगी ऐ कश लगा
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हसरतों की राख उड़ा
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ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
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बुलबुलों पे रुकना क्या पानियों पे बहता जा, बहता जा
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कश लगा, कश लगा, कश लगा....
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'''गीतकार- गुलज़ार'''
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11:26, 1 मार्च 2010 का अवतरण

हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
हम दर्द के सुर में गाते हैं
जब हद से गुज़र जाती है खुशी
आँसू भी छलकते आते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत...

पहलू में पराये दर्द बसाके
हँसना हँसाना सीख ज़रा
तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
हम प्यार के दीप जलाते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत ...

काँटों में खिले हैं फूल हमारे
रंग भरे अरमानों के
नादान हैं जो इन काँटों से
दामन को बचाये जाते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत ...

जब ग़म का अन्धेरा घिर आये
समझो के सवेरा दूर नहीं
हर रात की है सौगात यही
तारे भी यही दोहराते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत ...