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19:20, 1 मार्च 2010 का अवतरण
सड़क और जूतियाँ / संध्या पेडण॓कर
कमसिन कम्मो ने
बुढाती निम्मो के गले में
बाहें डाल कहा,
'आखिर.....
उसने मुझे रख ही लिया!!!'
झटके से उसे अपने से
अलाग कर निम्मो बोली,
'मुए को रसभरी ककड़ी
मुफ्त की मिली.......'
कम्मो की सपनीली आँखों ने कहा,
'मैं उससे प्रेम करती हूँ.... और...
मेरा प्रेम प्रतिदान नहीं मांगता.....'
निम्मो बोली, ' सही है लेकिन,
दुनिया तो तुझे रांड ही कहेगी,
तू कभी उसकी बीवी नहीं बनेगी
घर में उसके आगे बीवी बिछेगी
बाहर उसे तू पलकों पर रखेगी
दो जूतियाँ पैरों में चढ़ा कर
वह सीना तान कर
नई सड़क को कुचलने के लिए
आजाद है!'