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Kavita Kosh से
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दिल लगा कर जाना है
अकेले ही आखिर आख़िर जीना है
अकेले आना है
अकेले जाना है
न दुःख के
न हास के न परिहास के
तालाब के हैं सब ठूंठ ठूँठ
झीनी लहर पर सरकते
पास आते और घिसटकर जाते
पानी भरे लबालब
तो स्थिर रह कर गुजर गुज़र जाने देते
ऊपर ही ऊपर
डूबते-उतराते
न बिछुड़ने का दुःख
आदमी हैं यहाँ सब
तालाब के ठूंठठूँठ
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