"कौतुहल / संध्या पेडणेकर" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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माँ ने बक्से में रखा था | माँ ने बक्से में रखा था | ||
− | वह बाहर | + | वह बाहर झाँकता भी |
तो माँ फुत्कारती | तो माँ फुत्कारती | ||
तब पलटी मार कर वह | तब पलटी मार कर वह | ||
मिची आँखों से रेंगते | मिची आँखों से रेंगते | ||
अपने सहोदरों पर गिर पड़ता | अपने सहोदरों पर गिर पड़ता | ||
− | यह लेकिन | + | यह लेकिन ज़्यादा समय |
तक नहीं चल सका | तक नहीं चल सका | ||
एक दिन उसकी छलांग | एक दिन उसकी छलांग | ||
माँ के पीछे उसे | माँ के पीछे उसे | ||
− | बक्से से बाहर ले | + | बक्से से बाहर ले आई |
डर कर वह | डर कर वह | ||
− | + | ख़ुद फुफकारा | |
शरीर उसका अकड़कर | शरीर उसका अकड़कर | ||
− | धनुष सा हो गया | + | धनुष-सा हो गया |
कन्धों के दोनों छोर आपस में मिल गए | कन्धों के दोनों छोर आपस में मिल गए | ||
लेकिन धीरे धीरे उसे पता चला | लेकिन धीरे धीरे उसे पता चला | ||
− | अपनी | + | अपनी बौख़लाहट के अलावा |
यहाँ सब कुछ सामान्य है | यहाँ सब कुछ सामान्य है | ||
− | तो धीरे धीरे | + | तो धीरे-धीरे |
उसकी गोटी जैसी गोल आँखों में | उसकी गोटी जैसी गोल आँखों में | ||
− | + | कौतूहल जगा | |
शरीर की कमान ढीली पड़ी | शरीर की कमान ढीली पड़ी | ||
कीलों की तरह खड़े हुए बाल | कीलों की तरह खड़े हुए बाल | ||
शरीर से फिर चिपक गए | शरीर से फिर चिपक गए | ||
− | उभरी पूँछ नीचे | + | उभरी पूँछ नीचे आई |
उसकी मोटाई भी कम हुई | उसकी मोटाई भी कम हुई | ||
− | आस पास उसने जो देखा | + | आस-पास उसने जो देखा |
उससे उसका दिल भर आया | उससे उसका दिल भर आया | ||
− | पेट | + | पेट ज़मीन से टिका कर |
वह धीमे से पसर गया | वह धीमे से पसर गया | ||
हलकी खड़क की भी उसके कान टोह लेते | हलकी खड़क की भी उसके कान टोह लेते | ||
और आँखें | और आँखें | ||
− | लप लप कर हर दृश्य को | + | लप-लप कर हर दृश्य को |
दिल पर उकेर लेती | दिल पर उकेर लेती | ||
लटपट करते चारों पैरों से | लटपट करते चारों पैरों से | ||
− | + | ज़मीन पर ज़ोर देकर | |
वह उठा | वह उठा | ||
लटपट करती चाल से | लटपट करती चाल से | ||
− | दस | + | दस क़दम आगे बढ़ा |
फिर अचानक डर के मारे | फिर अचानक डर के मारे | ||
− | नन्ही नन्ही कुदानें मारता | + | नन्ही-नन्ही कुदानें मारता |
फिर बक्से की ओर लपका आया | फिर बक्से की ओर लपका आया | ||
अनजाना डर | अनजाना डर | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 60: | ||
पूँछ को व्यवस्थित लपेट कर | पूँछ को व्यवस्थित लपेट कर | ||
वह बैठ गया | वह बैठ गया | ||
− | विचार मग्न सा | + | विचार-मग्न सा |
निर्णय नहीं हो पा रहा था | निर्णय नहीं हो पा रहा था | ||
− | उत्तेजना के कारण अब | + | उत्तेजना के कारण अब उससे |
− | झपकी | + | झपकी आई |
बैठे बैठे वह झूलने लगा | बैठे बैठे वह झूलने लगा | ||
− | तभी | + | तभी .... |
तभी अचानक | तभी अचानक | ||
− | गर्दन से पकड़कर उसे | + | गर्दन से पकड़कर उसे किसी ने उठाया |
− | हलकी गुर्राहट.. | + | हलकी गुर्राहट.... |
हवा में उछला | हवा में उछला | ||
फिर वह बक्से में था | फिर वह बक्से में था |
20:27, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण
माँ ने बक्से में रखा था
वह बाहर झाँकता भी
तो माँ फुत्कारती
तब पलटी मार कर वह
मिची आँखों से रेंगते
अपने सहोदरों पर गिर पड़ता
यह लेकिन ज़्यादा समय
तक नहीं चल सका
एक दिन उसकी छलांग
माँ के पीछे उसे
बक्से से बाहर ले आई
डर कर वह
ख़ुद फुफकारा
शरीर उसका अकड़कर
धनुष-सा हो गया
कन्धों के दोनों छोर आपस में मिल गए
लेकिन धीरे धीरे उसे पता चला
अपनी बौख़लाहट के अलावा
यहाँ सब कुछ सामान्य है
तो धीरे-धीरे
उसकी गोटी जैसी गोल आँखों में
कौतूहल जगा
शरीर की कमान ढीली पड़ी
कीलों की तरह खड़े हुए बाल
शरीर से फिर चिपक गए
उभरी पूँछ नीचे आई
उसकी मोटाई भी कम हुई
आस-पास उसने जो देखा
उससे उसका दिल भर आया
पेट ज़मीन से टिका कर
वह धीमे से पसर गया
हलकी खड़क की भी उसके कान टोह लेते
और आँखें
लप-लप कर हर दृश्य को
दिल पर उकेर लेती
लटपट करते चारों पैरों से
ज़मीन पर ज़ोर देकर
वह उठा
लटपट करती चाल से
दस क़दम आगे बढ़ा
फिर अचानक डर के मारे
नन्ही-नन्ही कुदानें मारता
फिर बक्से की ओर लपका आया
अनजाना डर
अनजान स्थितियों से डर
बक्से से चिपक कर घिसटते हुए
उसने चारों पैर फैलाए
और फिर तन कर खड़े होकर टोह ली
कहाँ क्या है? कुछ भी तो नहीं!
पीछे वाले पैर मोड़ कर
पूँछ को व्यवस्थित लपेट कर
वह बैठ गया
विचार-मग्न सा
निर्णय नहीं हो पा रहा था
उत्तेजना के कारण अब उससे
झपकी आई
बैठे बैठे वह झूलने लगा
तभी ....
तभी अचानक
गर्दन से पकड़कर उसे किसी ने उठाया
हलकी गुर्राहट....
हवा में उछला
फिर वह बक्से में था
झिडकी और ममता भरी
गुर्राहट से कान गूँज रहे थे
लार से भरी जीभ के दुलार ने
उसे भिगा दिया था