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"आ कि मेरी जां को क़रार नहीं है / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है<br><br>
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06:00, 3 मार्च 2010 का अवतरण

आ, कि मेरी जान को क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तज़ार<ref>बेइंसाफी सहने की हिम्मत</ref> नहीं है

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर<ref>इस संसार की ज़िंदगी</ref> के बदले
नशा बअन्दाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है

गिरियां निकाले है तेरी बज़्म से मुझको
हाय कि रोने पे इख़्तियार नहीं है

हमसे अ़बस<ref>बेरुखी</ref> है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर<ref>नाराज़गी का अंदेशा</ref>
ख़ाक में उश्शाक़<ref>प्रेमी</ref> की ग़ुबार नहीं है

दिल से उठा लुत्फ-ए-जल्वा हाए म'आनी<ref>मतलब</ref>
ग़ैर-ए-गुल<ref>बिना फूल के</ref> आईना-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है अ़हद<ref>फैसला</ref> तो बारे<ref>आखिर</ref>
वाये! अखर<ref>लेकिन</ref> अ़हद उस्तवार<ref>पक्का</ref> नहीं है

तूने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब"
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है

शब्दार्थ
<references/>