भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिर इस अन्दाज़ से बहार आई / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem>फिर इस अंदाज़ से बहार आई | ||
+ | कि हुए मेहरो-मह<ref>चांद-सूरज</ref> तमाशाई | ||
− | + | देखो, ऐ सकिनान-ए-खित्तए-ख़ाक<ref>धरती के वासियो</ref> | |
− | के | + | इसको कहते हैं आलम-आराई<ref>दुनिया को सजाना</ref> |
− | + | कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर<ref>पूरी तरह</ref> | |
− | + | रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई<ref>आसमान जैसी जो तारे रूपी फूलों से भरा है</ref> | |
− | + | सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली | |
− | + | बन गया रूए-आब<ref>पानी की सतह</ref> पर काई | |
− | + | सब्ज़ा-ओ-गुल के देखने के लिये | |
− | + | चश्मे-नर्गिस को दी है बीनाई | |
− | + | है हवा में शराब की तासीर | |
− | + | बादा-नोशी है बाद-पैमाई<ref>हवा मापना</ref> | |
− | + | क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब" | |
− | + | शाह-ए-दीदार<ref>धर्मावतार बादशाह(बहादुरशाह)</ref> ने शिफ़ा<ref>रोग से छुटकारा</ref> पाई </poem> | |
− | + | {{KKMeaning}} | |
− | क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब" | + | |
− | शाह-ए-दीदार ने शिफ़ा | + |
08:40, 3 मार्च 2010 का अवतरण
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कि हुए मेहरो-मह<ref>चांद-सूरज</ref> तमाशाई
देखो, ऐ सकिनान-ए-खित्तए-ख़ाक<ref>धरती के वासियो</ref>
इसको कहते हैं आलम-आराई<ref>दुनिया को सजाना</ref>
कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर<ref>पूरी तरह</ref>
रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई<ref>आसमान जैसी जो तारे रूपी फूलों से भरा है</ref>
सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली
बन गया रूए-आब<ref>पानी की सतह</ref> पर काई
सब्ज़ा-ओ-गुल के देखने के लिये
चश्मे-नर्गिस को दी है बीनाई
है हवा में शराब की तासीर
बादा-नोशी है बाद-पैमाई<ref>हवा मापना</ref>
क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब"
शाह-ए-दीदार<ref>धर्मावतार बादशाह(बहादुरशाह)</ref> ने शिफ़ा<ref>रोग से छुटकारा</ref> पाई
शब्दार्थ
<references/>