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"टेलिफ़ोन पर पिता की आवाज़ / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
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दिये की लौ की तरह काँपती-सी। | दिये की लौ की तरह काँपती-सी। | ||
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दूर से आती हुई | दूर से आती हुई | ||
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छिपाए बेचैनी और दुख। | छिपाए बेचैनी और दुख। | ||
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टेलीफ़ोन के तार से गुज़रती हुई | टेलीफ़ोन के तार से गुज़रती हुई | ||
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कोसती खीझती | कोसती खीझती | ||
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इस आधुनिक उपकरण पर। | इस आधुनिक उपकरण पर। | ||
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तारों की तरह टिमटिमाती | तारों की तरह टिमटिमाती | ||
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टूटती-जुड़ती-सी आवाज़। | टूटती-जुड़ती-सी आवाज़। | ||
कितना सुखद | कितना सुखद | ||
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पिता को सुनना टेलीफ़ोन पर | पिता को सुनना टेलीफ़ोन पर | ||
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पहले-पहल कैसे पकड़ा होगा पिता ने टेलीफ़ोन। | पहले-पहल कैसे पकड़ा होगा पिता ने टेलीफ़ोन। | ||
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कड़कती बिजली-सी पिता की आवाज़ | कड़कती बिजली-सी पिता की आवाज़ | ||
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कैसी सहमी-सहमी-सी टेलीफ़ोन पर। | कैसी सहमी-सहमी-सी टेलीफ़ोन पर। | ||
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बनते-बिगड़ते बुलबुलों की तरह | बनते-बिगड़ते बुलबुलों की तरह | ||
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आवाज़ पिता की भर्राई हुई | आवाज़ पिता की भर्राई हुई | ||
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पकड़े रहे होंगे | पकड़े रहे होंगे | ||
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टेलीफ़ोन देर तक | टेलीफ़ोन देर तक | ||
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अपने ही बच्चों से | अपने ही बच्चों से | ||
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दूर से बातें करते पिता। | दूर से बातें करते पिता। | ||
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11:18, 3 मार्च 2010 का अवतरण
टेलीफ़ोन पर
थरथराती है पिता की आवाज़
दिये की लौ की तरह काँपती-सी।
दूर से आती हुई
छिपाए बेचैनी और दुख।
टेलीफ़ोन के तार से गुज़रती हुई
कोसती खीझती
इस आधुनिक उपकरण पर।
तारों की तरह टिमटिमाती
टूटती-जुड़ती-सी आवाज़।
कितना सुखद
पिता को सुनना टेलीफ़ोन पर
पहले-पहल कैसे पकड़ा होगा पिता ने टेलीफ़ोन।
कड़कती बिजली-सी पिता की आवाज़
कैसी सहमी-सहमी-सी टेलीफ़ोन पर।
बनते-बिगड़ते बुलबुलों की तरह
आवाज़ पिता की भर्राई हुई
पकड़े रहे होंगे
टेलीफ़ोन देर तक
अपने ही बच्चों से
दूर से बातें करते पिता।