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"माँ / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

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घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
 
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आँचल से ढँके अपना सर  
 
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माँ मुझे तेरी याद आ जाती है ।
 
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ओ स्त्री!
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उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
 
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क्यों, आख़िर क्यों ?
 
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क्या पक्षियों का कलरव
 
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झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?
 
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11:19, 3 मार्च 2010 का अवतरण

माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत ।

घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए

आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है ।

मेरी माँ की तरह
ओ स्त्री!

उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों ?

क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?