"कविता लिखने वाली लड़की / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
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जब कभी कविता लिखती है लड़की | जब कभी कविता लिखती है लड़की | ||
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कहा जाता है सीखो मशीन चलाना | कहा जाता है सीखो मशीन चलाना | ||
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सिलो कपड़े बुनो स्वेटर | सिलो कपड़े बुनो स्वेटर | ||
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मत बुनो शब्द मत बुनो कवि | मत बुनो शब्द मत बुनो कवि | ||
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यह सब फ़िज़ूलख़र्ची है वक़्त की। | यह सब फ़िज़ूलख़र्ची है वक़्त की। | ||
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रहो लड़कियों की तरह | रहो लड़कियों की तरह | ||
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मत घूमो सड़कों पर | मत घूमो सड़कों पर | ||
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मत लो बहसों में हिस्सा | मत लो बहसों में हिस्सा | ||
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सीखो पहले घर के सारे काम-काज | सीखो पहले घर के सारे काम-काज | ||
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और इन सबसे बच जाए समय | और इन सबसे बच जाए समय | ||
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तो कर लेना कविता-वविता भी। | तो कर लेना कविता-वविता भी। | ||
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ओ मरीना स्वेताएवा | ओ मरीना स्वेताएवा | ||
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क्या तुमसे भी कहा गया बार-बार | क्या तुमसे भी कहा गया बार-बार | ||
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रहो लड़कियों की तरह | रहो लड़कियों की तरह | ||
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क्या तुमने भी सिले कपड़े बनाए स्वेटर | क्या तुमने भी सिले कपड़े बनाए स्वेटर | ||
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या सड़कों पर टहलती | या सड़कों पर टहलती | ||
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देखती रहीं आसमान | देखती रहीं आसमान | ||
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किया होगा तुम्हें परेशान | किया होगा तुम्हें परेशान | ||
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फिर भी तुम झाँकती रही होगी खिड़की से। | फिर भी तुम झाँकती रही होगी खिड़की से। | ||
ओ मरीना | ओ मरीना | ||
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तुम्हारी ही तरह | तुम्हारी ही तरह | ||
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मैं भी बनूंगी कवि | मैं भी बनूंगी कवि | ||
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मशीन पर सिलते हुए कपड़े सिलूंगी कविता | मशीन पर सिलते हुए कपड़े सिलूंगी कविता | ||
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बुनते हुए स्वेटर बुनूंगी शब्द | बुनते हुए स्वेटर बुनूंगी शब्द | ||
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खुले आसमान के नीचे बैठकर करूंगी बातें | खुले आसमान के नीचे बैठकर करूंगी बातें | ||
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तुम्हारी कविताओं पर। | तुम्हारी कविताओं पर। | ||
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12:46, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण
जब कभी कविता लिखती है लड़की
कहा जाता है सीखो मशीन चलाना
सिलो कपड़े बुनो स्वेटर
मत बुनो शब्द मत बुनो कवि
यह सब फ़िज़ूलख़र्ची है वक़्त की।
रहो लड़कियों की तरह
मत घूमो सड़कों पर
मत लो बहसों में हिस्सा
सीखो पहले घर के सारे काम-काज
और इन सबसे बच जाए समय
तो कर लेना कविता-वविता भी।
ओ मरीना स्वेताएवा
क्या तुमसे भी कहा गया बार-बार
रहो लड़कियों की तरह
क्या तुमने भी सिले कपड़े बनाए स्वेटर
या सड़कों पर टहलती
देखती रहीं आसमान
सहे होंगे तुमने ताने
किया होगा तुम्हें परेशान
फिर भी तुम झाँकती रही होगी खिड़की से।
ओ मरीना
तुम्हारी ही तरह
मैं भी बनूंगी कवि
मशीन पर सिलते हुए कपड़े सिलूंगी कविता
बुनते हुए स्वेटर बुनूंगी शब्द
खुले आसमान के नीचे बैठकर करूंगी बातें
तुम्हारी कविताओं पर।