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"खिड़की / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
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शायद | शायद | ||
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पढ़ी जा रही हा कोई किताब | पढ़ी जा रही हा कोई किताब | ||
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12:58, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण
देर रात
सो चुका है जब शहर
अँधेरे के बीच टिमटिमाता है तारा
खिड़की जो एक खुली हुई है
है साथ तारे के ।
कमरे और खिड़की के बीच का फ़ासला
कमरे में है उदासी बावजूद रोशनी के ।
भीतर खिड़की के क्या ?
शायद
डूबा हुआ हो कोई स्वप्न में
पढ़ी जा रही हा कोई किताब
सोच रहा है कोई सुबह के बारे में ।
यह भी हो सकता है
प्रतीक्षा में है कोई लड़की
जाग रही है माँ निगरानी में ।