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"सफ़र / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
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02:46, 4 मार्च 2010 का अवतरण
आगे बढ़ते हुए
अगर देखोगे पीछे
मुड़-मुड़कर
तो मुमकिन है
कि गिर पड़ोगे कहीं
पीछे छूट गये लोग
पीछे देखे दृश्य
पीछे छूट गया समय
कभी लौटकर नहीं आते
फिर उनके बारे में सोचना क्या
अगले पड़ावों पर जाने क्या है
अगम्य पर्वत श्रेणियाँ
एक तपता रेगिस्तान
एक दुर्गम जंगल
या कोई शहर कंक्रीट का
या शायद कुछ खिलते हुए फूल
शायद कोई गाता हुआ झरना
या बहती हुई कोई मस्त नदी
जो पीछे छूट गया
वो लौट कर नहीं आयेगा
उसके लिये अफ़सोस मत करो
धरती जितनी छूटती है पीछे
उतनी ही होती है
आगे भी
जितना रह जाता है पीछे
समय होता है
उतना ही आगे भी
समय कभी छूटता नहीं
समय हमेशा साथ होता है