"शब, कि बर्क़े सोज़ें-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था /ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था | वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था | ||
− | यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी | + | यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी<ref>मस्ती की सभा की शमआ़</ref> |
− | जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब था | + | जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब<ref>एकत्र मित्रों का बिछावन</ref> था |
− | फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था | + | फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौज<ref>लहर</ref>-ए-रंग का |
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− | नागहां इस | + | नागहां<ref>सहसा</ref> इस रंग से ख़ूं-नाबा<ref>खून की बूंदे</ref> टपकाने लगा |
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+ | था सिपन्द<ref>एक काला दाना जो आग में गिरकर आवाज़ देता है</ref>-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर<ref>प्रतिद्वंदी की मिलन-सभा</ref>, गो बेताब था | ||
− | + | मक़दम-ए-सैलाब<ref>बाढ़ का स्वागत</ref> से दिल क्या निशात-आहंग<ref>आनन्दित</ref> है | |
− | + | ख़ाना-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का घर</ref> मगर साज़-ए-सदा-ए-आब<ref>पानी का बाजा</ref> था | |
+ | नाज़िश-ए-अय्याम-ए ख़ाकस्तर-नशीनी<ref>धरती पर बैठ कर बिताए दिनों का गर्व</ref> क्या कहूं | ||
+ | पहलूए-अन्देशा<ref>चिंतन की गोद</ref> वक़्फ़<ref>आराम</ref>-ए-बिस्तर-ए-संजाब<ref>मखमल</ref> था | ||
− | + | कुछ न की अपने जुनून-ए-नारसा ने, वरना यां | |
− | + | ज़र्रा-ज़र्रा<ref>कण-कण</ref> रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान<ref>सूरज से ईर्ष्या</ref> था | |
− | + | आज क्यों परवा नहीं अपने असीरों<ref>कैदीयों</ref> की तुझे | |
− | + | कल तलक तेरा भी दिल मेहर-ओ-वफ़ा<ref>प्रेम</ref> का बाब<ref>स्रोत</ref> था | |
− | + | याद कर वह दिन कि हर इक हल्क़ा तेरा दाम<ref>जाल</ref> का | |
− | + | इन्तज़ार-ए-सैद<ref>शिकार की प्रतीक्षा</ref> में इक दीदा-ए-बेख़्वाब<ref>उनींदे नेत्र</ref> था | |
− | + | मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरना देखते | |
− | + | उसके सैल-ए-गिरयां<ref>आंसुओं की बाढ़</ref> में गरदूं<ref>आसमान</ref> कफ़-ए-सैलाब<ref>बाढ़ की झाग</ref> था | |
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22:34, 4 मार्च 2010 का अवतरण
शब, कि बर्क़े-सोज़ें-दिल<ref>दिल जलाने वाली बिजली</ref> से ज़ोहरा-ए-अब्र<ref>बादल का पित्ता</ref> आब<ref>पानी</ref> था
शोला-ए-जव्वाला<ref>नाचती हुई आग</ref> हर इक हल्क़ा-ए-गिरदाब<ref>जल-भंवर</ref> था
वां करम को उज़्रे-बारिश<ref>बारिश का बहाना</ref> था इनागीरे-ख़िराम<ref>गति की लगाम थामे हुए</ref>
गिरयां<ref>रुदन</ref> से यां पम्बए-बालिश<ref>तकिए की रूई</ref> कफ़े-सैलाब<ref>पानी का झाग</ref> था
वां ख़ुद आराई<ref>आत्मसज्जा</ref> को था मोती पिरोने का ख़याल
यां हुजूमे-अश्क<ref>अश्रु-समूह</ref> में तारे-निगह<ref>निगाह</ref> नायाब<ref>अलभ्य</ref> था
जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छटा</ref> ने किया था वां चिराग़ां आबे-जू<ref>पानी की धारा</ref>
यां रबां<ref>बह रहा धा</ref> मिज़गाने-चश्मे-तर<ref>भीगी आँखों की पलकें</ref> से ख़ूने-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref> था
यां सरे-पुर-शोर<ref>उन्मत्त सिर</ref> बेख़्वाबी से था दीवार-जू<ref>दीवार ढूँढना</ref>
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था
यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी<ref>मस्ती की सभा की शमआ़</ref>
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब<ref>एकत्र मित्रों का बिछावन</ref> था
फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौज<ref>लहर</ref>-ए-रंग का
यां ज़मीं से आस्मां तक सोख़्तन<ref>जलना</ref> का बाब<ref>हालत</ref> था
नागहां<ref>सहसा</ref> इस रंग से ख़ूं-नाबा<ref>खून की बूंदे</ref> टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन<ref>नाख़ून की कुरेद का मज़ा</ref> से लज़्ज़त-याब<ref>आनन्दित</ref> था
नाला<ref>आह</ref>-ए-दिल में शब अन्दाज़-ए-असर नायाब था
था सिपन्द<ref>एक काला दाना जो आग में गिरकर आवाज़ देता है</ref>-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर<ref>प्रतिद्वंदी की मिलन-सभा</ref>, गो बेताब था
मक़दम-ए-सैलाब<ref>बाढ़ का स्वागत</ref> से दिल क्या निशात-आहंग<ref>आनन्दित</ref> है
ख़ाना-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का घर</ref> मगर साज़-ए-सदा-ए-आब<ref>पानी का बाजा</ref> था
नाज़िश-ए-अय्याम-ए ख़ाकस्तर-नशीनी<ref>धरती पर बैठ कर बिताए दिनों का गर्व</ref> क्या कहूं
पहलूए-अन्देशा<ref>चिंतन की गोद</ref> वक़्फ़<ref>आराम</ref>-ए-बिस्तर-ए-संजाब<ref>मखमल</ref> था
कुछ न की अपने जुनून-ए-नारसा ने, वरना यां
ज़र्रा-ज़र्रा<ref>कण-कण</ref> रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान<ref>सूरज से ईर्ष्या</ref> था
आज क्यों परवा नहीं अपने असीरों<ref>कैदीयों</ref> की तुझे
कल तलक तेरा भी दिल मेहर-ओ-वफ़ा<ref>प्रेम</ref> का बाब<ref>स्रोत</ref> था
याद कर वह दिन कि हर इक हल्क़ा तेरा दाम<ref>जाल</ref> का
इन्तज़ार-ए-सैद<ref>शिकार की प्रतीक्षा</ref> में इक दीदा-ए-बेख़्वाब<ref>उनींदे नेत्र</ref> था
मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरना देखते
उसके सैल-ए-गिरयां<ref>आंसुओं की बाढ़</ref> में गरदूं<ref>आसमान</ref> कफ़-ए-सैलाब<ref>बाढ़ की झाग</ref> था