भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब, कि बर्क़े सोज़ें-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था /ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था
 
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था
  
यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी
+
यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी<ref>मस्ती की सभा की शमआ़</ref>
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब था
+
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब<ref>एकत्र मित्रों का बिछावन</ref> था
  
फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौजे-रंग का  
+
फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौज<ref>लहर</ref>-ए-रंग का  
यां ज़मीं से आस्मां तक सोख़्तन का बाब था
+
यां ज़मीं से आस्मां तक सोख़्तन<ref>जलना</ref> का बाब<ref>हालत</ref> था
  
नागहां इस रनग से ख़ूं-नाबह टपकाने लगा  
+
नागहां<ref>सहसा</ref> इस रंग से ख़ूं-नाबा<ref>खून की बूंदे</ref> टपकाने लगा  
दिल कि ज़ौक़-ए काविश-ए नाख़ुन से लज़ज़त-याब था
+
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन<ref>नाख़ून की कुरेद का मज़ा</ref> से लज़्ज़त-याब<ref>आनन्दित</ref> था
  
 +
नाला<ref>आह</ref>-ए-दिल में शब अन्दाज़-ए-असर नायाब था
 +
था सिपन्द<ref>एक काला दाना जो आग में गिरकर आवाज़ देता है</ref>-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर<ref>प्रतिद्वंदी की मिलन-सभा</ref>, गो बेताब था
  
नालह-ए दिल में शब अनदाज़-ए असर नायाब था
+
मक़दम-ए-सैलाब<ref>बाढ़ का स्वागत</ref> से दिल क्या निशात-आहंग<ref>आनन्दित</ref> है
था सिपनद-ए बज़म-ए वसल-ए ग़ैर गो बेताब था
+
ख़ाना-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का घर</ref> मगर साज़-ए-सदा-ए-आब<ref>पानी का बाजा</ref> था
  
 +
नाज़िश-ए-अय्याम-ए ख़ाकस्तर-नशीनी<ref>धरती पर बैठ कर बिताए दिनों का गर्व</ref> क्या कहूं
 +
पहलूए-अन्देशा<ref>चिंतन की गोद</ref> वक़्फ़<ref>आराम</ref>-ए-बिस्तर-ए-संजाब<ref>मखमल</ref> था
  
मक़दम-ए सैलाब से दिल कया नशात-आहनग है
+
कुछ न की अपने जुनून-ए-नारसा ने, वरना यां
ख़ानह-ए `आशिक़ मगर साज़-ए सदा-ए आब था
+
ज़र्रा-ज़र्रा<ref>कण-कण</ref> रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान<ref>सूरज से ईर्ष्या</ref> था
  
नाज़िश-ए अययाम-ए ख़ाकिसतर-निशीनी कया कहूं
+
आज क्यों परवा नहीं अपने असीरों<ref>कैदीयों</ref> की तुझे
पहलू-ए अनदेशह वक़फ़-ए बिसतर-ए सनजाब था
+
कल तलक तेरा भी दिल मेहर--वफ़ा<ref>प्रेम</ref> का बाब<ref>स्रोत</ref> था
  
कुछ न की अपनी जुनून-ए ना-रसा ने वरनह यां
+
याद कर वह दिन कि हर इक हल्क़ा तेरा दाम<ref>जाल</ref> का
ज़ररह ज़ररह रू-कश-ए ख़वुरशीद-ए `आलम-ताब था
+
इन्तज़ार-ए-सैद<ref>शिकार की प्रतीक्षा</ref> में इक दीदा-ए-बेख़्वाब<ref>उनींदे नेत्र</ref> था
  
आज कयूं परवा नहीं अपने असीरों की तुझे
+
मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरना देखते  
कल तलक तेरा भी दिल मिहर-ओ-वफ़ा का बाब था
+
उसके सैल-ए-गिरयां<ref>आंसुओं की बाढ़</ref> में गरदूं<ref>आसमान</ref> कफ़-ए-सैलाब<ref>बाढ़ की झाग</ref> था
 
+
याद कर वह दिन कि हर इक हलक़ह तेरा दाम का
+
इनतिज़ार-ए सैद में इक दीदह-ए बे-ख़वाब था
+
 
+
मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरनह देखते  
+
उस के सैल-ए गिरयह में गरदूं कफ़-ए सैलाब था
+
 
</poem>
 
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

22:34, 4 मार्च 2010 का अवतरण

शब, कि बर्क़े-सोज़ें-दिल<ref>दिल जलाने वाली बिजली</ref> से ज़ोहरा-ए-अब्र<ref>बादल का पित्ता</ref> आब<ref>पानी</ref> था
शोला-ए-जव्वाला<ref>नाचती हुई आग</ref> हर इक हल्क़ा-ए-गिरदाब<ref>जल-भंवर</ref> था

वां करम को उज़्रे-बारिश<ref>बारिश का बहाना</ref> था इनागीरे-ख़िराम<ref>गति की लगाम थामे हुए</ref>
गिरयां<ref>रुदन</ref> से यां पम्बए-बालिश<ref>तकिए की रूई</ref> कफ़े-सैलाब<ref>पानी का झाग</ref> था

वां ख़ुद आराई<ref>आत्मसज्जा</ref> को था मोती पिरोने का ख़याल
यां हुजूमे-अश्क<ref>अश्रु-समूह</ref> में तारे-निगह<ref>निगाह</ref> नायाब<ref>अलभ्य</ref> था

जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छटा</ref> ने किया था वां चिराग़ां आबे-जू<ref>पानी की धारा</ref>
यां रबां<ref>बह रहा धा</ref> मिज़गाने-चश्मे-तर<ref>भीगी आँखों की पलकें</ref> से ख़ूने-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref> था

यां सरे-पुर-शोर<ref>उन्मत्त सिर</ref> बेख़्वाबी से था दीवार-जू<ref>दीवार ढूँढना</ref>
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था

यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी<ref>मस्ती की सभा की शमआ़</ref>
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब<ref>एकत्र मित्रों का बिछावन</ref> था

फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौज<ref>लहर</ref>-ए-रंग का
यां ज़मीं से आस्मां तक सोख़्तन<ref>जलना</ref> का बाब<ref>हालत</ref> था

नागहां<ref>सहसा</ref> इस रंग से ख़ूं-नाबा<ref>खून की बूंदे</ref> टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन<ref>नाख़ून की कुरेद का मज़ा</ref> से लज़्ज़त-याब<ref>आनन्दित</ref> था

नाला<ref>आह</ref>-ए-दिल में शब अन्दाज़-ए-असर नायाब था
था सिपन्द<ref>एक काला दाना जो आग में गिरकर आवाज़ देता है</ref>-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर<ref>प्रतिद्वंदी की मिलन-सभा</ref>, गो बेताब था

मक़दम-ए-सैलाब<ref>बाढ़ का स्वागत</ref> से दिल क्या निशात-आहंग<ref>आनन्दित</ref> है
ख़ाना-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का घर</ref> मगर साज़-ए-सदा-ए-आब<ref>पानी का बाजा</ref> था

नाज़िश-ए-अय्याम-ए ख़ाकस्तर-नशीनी<ref>धरती पर बैठ कर बिताए दिनों का गर्व</ref> क्या कहूं
पहलूए-अन्देशा<ref>चिंतन की गोद</ref> वक़्फ़<ref>आराम</ref>-ए-बिस्तर-ए-संजाब<ref>मखमल</ref> था

कुछ न की अपने जुनून-ए-नारसा ने, वरना यां
ज़र्रा-ज़र्रा<ref>कण-कण</ref> रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान<ref>सूरज से ईर्ष्या</ref> था

आज क्यों परवा नहीं अपने असीरों<ref>कैदीयों</ref> की तुझे
कल तलक तेरा भी दिल मेहर-ओ-वफ़ा<ref>प्रेम</ref> का बाब<ref>स्रोत</ref> था

याद कर वह दिन कि हर इक हल्क़ा तेरा दाम<ref>जाल</ref> का
इन्तज़ार-ए-सैद<ref>शिकार की प्रतीक्षा</ref> में इक दीदा-ए-बेख़्वाब<ref>उनींदे नेत्र</ref> था

मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरना देखते
उसके सैल-ए-गिरयां<ref>आंसुओं की बाढ़</ref> में गरदूं<ref>आसमान</ref> कफ़-ए-सैलाब<ref>बाढ़ की झाग</ref> था

शब्दार्थ
<references/>