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"ढाबा : आठ कविताएँ-7 / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
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वह वक़्त-बेवक़्त की बारिश | वह वक़्त-बेवक़्त की बारिश | ||
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भीगते हुए सेंकी जिसमें हमने रोटियाँ | भीगते हुए सेंकी जिसमें हमने रोटियाँ | ||
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ग्राहक की जगह को पानी से बचाते भीग जाते थे हम पूरे के पूरे | ग्राहक की जगह को पानी से बचाते भीग जाते थे हम पूरे के पूरे | ||
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भीगते हुए देखती माँ | भीगते हुए देखती माँ | ||
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खड़ी रहती दरवाज़े पर सूखे कपड़े लिए | खड़ी रहती दरवाज़े पर सूखे कपड़े लिए | ||
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हमारे गीले सिरों पर हाथ फेरते हुए | हमारे गीले सिरों पर हाथ फेरते हुए | ||
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मन ही मन बुदबुदाती | मन ही मन बुदबुदाती | ||
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आएगी अगली बारिश में सबके लिए बरसाती। | आएगी अगली बारिश में सबके लिए बरसाती। | ||
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15:39, 5 मार्च 2010 के समय का अवतरण
वह वक़्त-बेवक़्त की बारिश
भीगते हुए सेंकी जिसमें हमने रोटियाँ
ग्राहक की जगह को पानी से बचाते भीग जाते थे हम पूरे के पूरे
भीगते हुए देखती माँ
खड़ी रहती दरवाज़े पर सूखे कपड़े लिए
हमारे गीले सिरों पर हाथ फेरते हुए
मन ही मन बुदबुदाती
आएगी अगली बारिश में सबके लिए बरसाती।