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"बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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22:16, 7 मार्च 2010 का अवतरण

बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना

गिरियां<ref>रोना</ref> चाहे है ख़राबी मेरे काशाने<ref>घर</ref> की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना

वाए दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना

जल्वा अज़-बस कि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है
जौहर-ए-आईना<ref>आईने का पानी</ref> भी चाहे है मिज़गां<ref>पलकें</ref> होना

इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना<ref>चाहने वालों का वध-स्थल का ऐशवर्य</ref> मत पूछ
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां<ref>म्यान से बाहर निकलना, नग्न</ref> होना

ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात
तू हो और आप बसद-रंग<ref>सैंकड़ों रंगों में</ref> गुलिस्तां होना

इशरत-ए-पारा-ए-दिल<ref>दिल के टुकड़ों का मज़ा</ref> ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना
लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिग़र<ref>जिगर के घाव का मज़ा</ref> ग़र्क़-ए-नमकदां<ref>नमकदान मे डूबना</ref> होना

की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा
हाय उस ज़ूद-पशेमां<ref>शीघ्र लज्जित होने वाला</ref> का पशेमां होना

हैफ़<ref>अफसोस</ref> उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना

शब्दार्थ
<references/>