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"हिन्दुस्तानी अमीर / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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कितनी घिनौनी होती है | कितनी घिनौनी होती है | ||
बड़े बड़े जूड़े काले चश्मे | बड़े बड़े जूड़े काले चश्मे | ||
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हवाई अड्डे पर एक लूट की गंध रहती है | हवाई अड्डे पर एक लूट की गंध रहती है | ||
− | चिकने गोल गोल | + | चिकने गोल-गोल मुँह |
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हर क़िस्म का भारतीय अमीर होकर | हर क़िस्म का भारतीय अमीर होकर | ||
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कि वह दूसरे भारतीयों से | कि वह दूसरे भारतीयों से | ||
भिन्न दिखाई देने लगता है | भिन्न दिखाई देने लगता है | ||
− | उनमें से कुछ ही थैंक्यू | + | उनमें से कुछ ही थैंक्यू अँग्रेज़ी ढंग से कह पाते हैं |
− | बाक़ी अपनी अपनी बोली के लहज़े लपेट कर छोड़ देते हैं। | + | बाक़ी अपनी-अपनी बोली के लहज़े लपेट कर छोड़ देते हैं। |
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01:07, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण
किस तरह की सरकार बना रहे हैं
यह तो पूछना ही चाहिए
किस तरह का समाज बना रहे हैं
यह भी पूछना चाहिए
हमारे घरों की लड़कियों को देखिए
हर समय स्त्री बनने के लिए तैयार
सजी बनी
हिन्दुस्तानी अमीर की भूख
कितनी घिनौनी होती है
बड़े बड़े जूड़े काले चश्मे
पाँव पर पाँव चढ़ाए
हवाई अड्डे पर एक लूट की गंध रहती है
चिकने गोल-गोल मुँह
अँग्रेज़ी बोलने की कोशिश करते हुए
हर क़िस्म का भारतीय अमीर होकर
एक क़िस्म का चेहरा बन जाता है
और अगर विलायत में रहा हो तो
उसका स्वास्थ्य इतना सुधर जाता है
कि वह दूसरे भारतीयों से
भिन्न दिखाई देने लगता है
उनमें से कुछ ही थैंक्यू अँग्रेज़ी ढंग से कह पाते हैं
बाक़ी अपनी-अपनी बोली के लहज़े लपेट कर छोड़ देते हैं।