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"हँसो हँसो जल्दी हँसो (कविता) / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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वरना शक होगा कि यह शख्स शर्म में शामिल नहीं
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जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए
 
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तुम बोल सकते हो अपने से
 
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अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
 
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जो कि अनिवार्य हों
 
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जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
 
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जहां कोई कुछ कर नहीं सकता
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हँसो हँसो जल्दी हँसो
 
हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएं
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उसको याद दिलाते हुए हँसो
 
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01:10, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण

हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है

हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगी
और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख़्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे

हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो
सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए

जितनी देर ऊँचा गोल गुंबद गूँजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूँज थमते थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे

हँसो पर चुटकलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हो जो किसी ने सौ साल साल पहले दिए हों

बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता
उस ग़रीब के सिवाय
और वह भी अकसर हँसता है

हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएँ
उनसे हाथ मिलाते हुए
नज़रें नीची किए
उसको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे !