भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लालटेन / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह= }} <Poem> कंजक कुँआरी कविताओं क...)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
<Poem>
+
[[Category:पंजाबी भाषा]]
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
कंजक कुँआरी कविताओं का
 
कंजक कुँआरी कविताओं का
 
एक कब्रिस्तान है
 
एक कब्रिस्तान है

02:43, 8 मार्च 2010 का अवतरण

कंजक कुँआरी कविताओं का
एक कब्रिस्तान है
मेरे सीने के भीतर

कविताएँ
जिनके जिस्म से अभी
संगीत पनपना शुरू हुआ था
और उनके अंग
कपड़ों के नीचे
जवान हो रहे थे
उनके मरमरी चेहरों पर
सुर्ख आभा झिलमिलाने लगी थी

तभी अतीत ने
उन्हें क्रोधित आँखों से देखा
वर्तमान ने
तिरछी नज़रों से घूरा
और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई

इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर
मैंने उन कविताओं को
अपने मन की धरती में
गहरा दबा डाला
अपनी तरफ़ से उन्हें
गहरी नींद सुला डाला
और कहा-
कि अभी कविताओं को
प्यार करने का समय नहीं

लेकिन टिकी रात के
ख़ौफ़नाक अंधेरे में
मेरे भीतर अब भी
उनकी भयानक हँसी गूँजती
दिल दहला देने वाली चीख़ें
विलाप की आवाज़
मेरे मन की दीवारों से
टकरा-टकरा कर लौटती
और पूछती-
कि हमारा गुनाह क्या था ?
आवाज़ पूछती
तो मेरे मन की मिट्टी काँपती
काँपती और तड़पती
और मैं
घर से छिपकर
समाज से छिपकर
पूर्वजों से छिपकर
हाथों में
स्मृतियों की लालटेन पकड़े
सारे क़ब्रिस्तान की परिक्रमा करता।

और कंजक कुँआरी
कविताओं की कब्रों पर
अपने लहू का
एक-एक चिराग
रोशन करता।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा