भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रौंदी हुई है कौकबए-शहरयार की / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= ग़ालिब |संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब }} [[Category:ग़ज…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:45, 9 मार्च 2010 का अवतरण
रौंदी हुई है कौकबए-शहरयार<ref>बादशाह का नौकर</ref> की
इतराए क्यों न ख़ाक, सर-ए-रहगुज़ार<ref>सड़क का किनारा</ref> की
जब, उस के देखने के लिये, आएं बादशाह
लोगों में क्यों नुमूद<ref>धूमधाम</ref> न हो, लालाज़ार<ref>टयूलिप का बाग</ref> की
भूखे नहीं हैं सैर-ए-गुलिस्तां के हम, वले<ref>लेकिन</ref>
क्योंकर न खाइये, कि हवा है बहार की
शब्दार्थ
<references/>