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"लाग़र इतना हूं कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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08:43, 10 मार्च 2010 का अवतरण

लाग़र<ref>दुर्बल</ref> इतना हूं कि, गर तू बज़्म<ref>महफिल</ref> में जा दे मुझे
मेरा ज़िम्मा, देख कर गर कोई बतला दे मुझे

क्या तअ़ज्जुब है कि उस को, देख कर आ जाए रहम
वां तलक कोई किसी हीले से पहुंचा दे मुझे

मुंह न दिखलावे न दिखला, पर ब अंदाज़-ए`इताब<ref>गुस्से के ढंग से</ref>
खोल कर परदा ज़रा, आँखें ही दिखला दे मुझे

यां तलक मेरी गिरफ़्तारी से वह ख़ुश है, कि मैं
ज़ुल्फ़ गर बन जाऊं, तो शाने<ref>कंघी</ref> में उलझा दे मुझे

शब्दार्थ
<references/>