"दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिये / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | <poem>दिया है दिल अगर उसको, बशर<ref>मनुष्य</ref> है क्या कहिये | + | <poem> |
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ये ज़िद, कि आज न आवे और आये बिन न रहे | ये ज़िद, कि आज न आवे और आये बिन न रहे | ||
− | क़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिये | + | क़ज़ा<ref>किस्मत</ref> से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिये |
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अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये | अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये | ||
− | ज़हे-करिश्मा, कि यों दे रखा है हमको फ़रेब | + | ज़हे-करिश्मा<ref>कमाल का चमत्कार</ref>, कि यों दे रखा है हमको फ़रेब |
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहिये | कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहिये | ||
− | समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल | + | समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल<ref>हाल-चाल पूछना</ref> |
− | कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है, क्या कहिये | + | कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र<ref>सड़क के किनारे</ref> है, क्या कहिये |
− | तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख़याल | + | तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा<ref>वफ़ा के रिश्ते का अंत</ref> का ख़याल |
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या, कहिये | हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या, कहिये | ||
उन्हें सवाल पे ज़ोअ़मे-जुनूं<ref>उन्माद का घमंड</ref> है, क्यूँ लड़िये | उन्हें सवाल पे ज़ोअ़मे-जुनूं<ref>उन्माद का घमंड</ref> है, क्यूँ लड़िये | ||
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09:39, 10 मार्च 2010 का अवतरण
दिया है दिल अगर उसको, बशर<ref>मनुष्य</ref> है क्या कहिये
हुआ रक़ीब<ref>प्रतियोगी</ref> तो हो, नामाबर<ref>संदेशवाहक</ref> है, क्या कहिये
ये ज़िद, कि आज न आवे और आये बिन न रहे
क़ज़ा<ref>किस्मत</ref> से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिये
रहे है यों गहो-बेगह<ref>समय-असमय</ref> कि कूए-दोस्त<ref>यार की गली</ref> को अब
अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये
ज़हे-करिश्मा<ref>कमाल का चमत्कार</ref>, कि यों दे रखा है हमको फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहिये
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल<ref>हाल-चाल पूछना</ref>
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र<ref>सड़क के किनारे</ref> है, क्या कहिये
तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा<ref>वफ़ा के रिश्ते का अंत</ref> का ख़याल
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या, कहिये
उन्हें सवाल पे ज़ोअ़मे-जुनूं<ref>उन्माद का घमंड</ref> है, क्यूँ लड़िये
हमें जवाब से क़तअ़ए-नज़र<ref>उपेक्षा</ref> है, क्या कहिये
हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है<ref>ईर्ष्या अचछा लिखने की सज़ा है</ref>, क्या कीजे
सितम, बहा-ए-मताअ़-ए-हुनर<ref>कलारूपी निधि</ref> है, क्या कहिये
कहा है किसने कि "ग़ालिब" बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इसके कि आशुफ़्ता-सर<ref>भुलक्कड़</ref> है क्या कहिये