भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अकेले ... और ... अछूत / अंशु मालवीय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ... हम | + | ... हम तुमसे क्या उम्मीद करते |
बाम्हन देव! | बाम्हन देव! | ||
तुमने तो ख़ुद अपने शरीर के | तुमने तो ख़ुद अपने शरीर के |
09:53, 10 मार्च 2010 के समय का अवतरण
... हम तुमसे क्या उम्मीद करते
बाम्हन देव!
तुमने तो ख़ुद अपने शरीर के
बायें हिस्से को अछूत बना डाला,
बनाया पैरों को अछूत
रंभाते रहे मां ... मां ... और मां
और मातृत्व रस के
रक्ताभ धब्बों को बना दिया अछूत
हमारे चलने को कहा रेंगना
भाषा को अछूत बना दिया
छंद को, दिशा को
वृक्षों को, पंछियों को
समय को, नदियों को
एक-एक कर सारी सदियों को
बना दिया अछूत
सब कुछ बांटा
किया विघटन में विकास
और अब देखो बाम्हन देव
इतना सब कुछ करते हुए
आज अकेले बचे तुम
अकेले ... और ... अछूत.