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"क्यूं न हो चश्म-ए-बुतां महव-ए-तग़ाफ़ुल / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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10:13, 10 मार्च 2010 का अवतरण

क्यूं न हो चश्म-ए-बुतां<ref>बुत की आँख</ref> महव-ए-तग़ाफ़ुल<ref>बे-खबरी में लुप्त</ref> क्यूं न हो
यानी उस बीमार को नज़्ज़ारे<ref>दर्शन</ref> से परहेज़ है

मरते मरते देखने की आरज़ू रह जाएगी
वाए<ref>आखिर</ref> ना-कामी कि उस काफ़िर का ख़ंजर तेज़ है

आ़रिज़-ए-गुल<ref>गुलाब का गाल</ref> देख रू-ए-यार<ref>प्रिय का चेहरा</ref> याद आया 'असद'
जोशिश-ए-फ़सल-ए बहारी<ref>बंसत का फूटना(ज़ोर से आना)</ref> इश्तियाक़-अंगेज़<ref>रोमांचक</ref> है

शब्दार्थ
<references/>